कुछ वर्गों के लिए विशेष प्रावधान
[भाग- 16 अनु. 330-342]
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष प्रावधान- [SC-ST]
विधायिकाओं में सीटों का आरक्षण
- लोकसभा अनु. 330
- SC के लिए
84 सीटे, पहले 79 थी।
- SC के लिए
47 सीटें
- उत्तर प्रदेश में लोक सभा की कुल 80 सीटे हैं जिसमें 17 सीटें SC के लिए आरक्षित है।
- विधान सभा अनु. 332
- SC
सर्वाधिक सीटें उ.प्र. में आरक्षित
(लगभग 86 सीटें)
- ST
सर्वाधिक MP में आरक्षित
- अनु. 334 में कहा गया है कि यह आरक्षण 10 वर्ष तक होगा। 10 वर्ष बाद संविधान का संशोधन करके इस आरक्षण को बढ़ाया जा सकता है। 95वें संशोधन द्वारा यह आरक्षण 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।
NOTE- राज्य सभा और विधानपरिषद में SC और ST को आरक्षण नहीं दिया गया है।
SC/ST की परिभाषा- अनु.336
- अनु. 341
राष्ट्रपति किसी जाति को अनुसूचित जाति घोषित कर सकता है।
- अनु. 342
राष्ट्रपति किसी जाति को अनुसूचित जनजाति घोषित कर सकता है।
- राष्ट्रपति द्वारा घोषित उपरोक्त दोनों में वर्णित जातियाँ ही अनु. 366 के अंतर्गत SC/ST की परिभाषा में आयेगी।
SC/ST –आयोग, अनु.338
-
- 65वां संशोधन
SC/ST के लिए संयुक्त आयोग
- 65वां संशोधन
- 89वां संशोधन
SC/ST के लिए अलग-अलग आयोग
- SC/ST आयोग का गठन राष्ट्रपति करता है राष्ट्रपति ने 1990ई. में SC/ST के लिए संयुक्त आयोग का गठन किया था। बाद में 89वें संशोधन के द्वारा अनु. 338(क) जोड़कर SC/ST के लिए 6 अलग-अलग आयोग गठित किये गए SC/ST आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होते है।
SC/ST के लिए अन्य प्रावधान
- कल्याण अधिकारी की नियुक्ति अनु. 389
- राष्ट्रपति करता है।
- जनजाति मंत्री की नियुक्ति
- उड़ीस, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के मंत्रिपरिषद में एक जनजाति मंत्री भी नियुक्त किया जाएगा।
- अनुसूचित जाति, जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 SC/ST के किये जाने वाले अत्याचार और शोषण से मुक्ति दिलाता है।
अन्य वर्गों के लिए प्रावधान
- एंलो इंडिया
- लोकसभा [ अनु.331]
- राष्ट्रपति 2 एंग्लोइण्डियन का मनोनयन कर सकता है।
- विधानसभा [ अनु. 333]
- राज्यपाल एक एंग्लो-इण्डियन का मनोनयन कर सकता है।
- पिछड़ा वर्ग आयोग
- अनु. 340 के अंतर्गत राष्ट्रपति पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कर सकता है अब इसे संवैधानिक दर्जा दे दिया गया है।
राजभाषा, राजभाषा आयोग-
[भाग-17 अनु. 343-351]
भाषायें
1. सम्पर्क भाषा
आपसी संवाद की भाषा-
हिन्दी
2. राष्ट्रभाषा
राष्ट्रीय भावना को प्रकट करने वाली भाषा
हिन्दी
3. राजभाषा
राजकाज या सरकारी राजकाज की भाषा
हिन्दी
-
- भारत में कुल 1652 भाषायें है इन भाषाओं में केवल 22 भाषाओं को संविधान की आठवी अनुसूची में स्थान दिया गया है। मूल संविधान में 8वीं अनुसूची में केवल 14 भाषाओं का उल्लेख था। इसके बाद-
- 21वें संशोधन के द्वारा सिंधी को 15वीं भाषा के रूप मे्ं जोड़ा गया।
- 71वें संशोधन के द्वारा नेपाली, कोकंणी, मणिपुरी को जोड़ा गया।
- 92वें संशोधन के द्वारा डोंगरी, बोडों, मैथिली संथाली को जोड़ा गया।
भाषा से संबंधित संवैधानिक प्रावधान- - अनु. 343 में कहा गया है कि संघ की राज भाषा हिंदी होगी लिपि देवगिरी होगी हिंदी अंको का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप मान्य होगा।
- संविधान लागू होने के 15 वर्षों तक (1965) हिन्दी के साथ अंग्रेजी का सहभाषा के रूप में प्रयोग किया जाता रहेगा।
- अनु.344 में कहा गया है कि हिन्दी भाषा के विकास के लिए सुझाव देने हेतु प्रत्येक 10 वर्ष के अंतराल पर राजभाषा आयोग का गठन किया जायेगा। पहला राजभाषा आयोग 1955 में ही गठित कर दिया गया था इसके अध्यक्ष बी.जी. खेर थे।
- अनु.348 में कहा गया है कि संसदीय कानून और न्यायालय के आदेश की भाषा तब तक अंग्रेजी होगी जब तक संसद अन्यथा प्रबंधन न करें।
- जबकि अनु. 120 में कहा गया है कि संसदीय कार्यवाहियाँ हिन्दी या अंग्रेजी में की जा सकेंगी। यदि कोई संसद सदस्य अपनी प्रान्तीय भाषा में बोलना चाहता है तो अध्यक्ष की इजाजत से वह बोल सकता है।
- कोई भी राज्य 8वीं अनुसूची की किसी भाषा को अपनी राजभाषा घोषित कर सकता है। जैसे 1989 में उर्दू को उत्तर प्रदेश की दूसरी राजभाषा घोषित किया गया।
- अनु. 350(क) में कहा गया है कि राज्यभाषाई अल्पसंख्यकों के बच्चों को उनकी मातृ भाषा में शिक्षा की सुविधायें उपलब्ध करायेगी।
- अनु. 350(ख) में कहा गया है कि राज्यभाषाई अल्पसंख्यकों के लिए राजभाषा अधिकारी की नियुक्त कर सकता है यह नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा।
- अनु.351 में कहा गया है कि राज्य हिन्दी भाषा के विकास के लिए काम करेगा।
NOTE- 1964ई. में गठित कोठारी आयोग त्रिभाषा फार्मूला दिया था।
त्रिभाषा = हिंदी + अंग्रेजी + कोई प्रान्तीय भाषा।
आपात उपबन्ध
[भाग-18 अनु. 352-360]
- अनु.352
राष्ट्रीय आपात
- अनु. 356
राष्ट्रपति शासन
- अनु.360
वित्तीय आपात
प्रकीर्ण
[भाग-19 अनु.361-367]
- अनु.361
- यदि राष्ट्रपति और राज्यपाल अपनी पदावधि के दौरान किसी का मर्डर भी कर दे तो उनके विरुद्ध कोई आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता हाँ दो महीने की पूर्व सूचना पर दिवानी मामलों में मुकदमा चलाया जा सकता है।
- अनु.365
- यदि राज्य केंद्र सरकार के द्वारा दिये गये कार्यपालिकीय अनुदेशों का पालन नहीं करता तो राज्यपाल की अनुशंसा पर राष्ट्रपति शासन लगा सकता है।