History Class Lecture Notes
- महत्वपूर्ण तथ्य (Important Facts)—
- सिन्धु घाटी सभ्यता (2500 से 1750 ई. पू.) को हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है।
- हड़प्पा की खोज राजबहादुर दयाराम साहनी द्वारा वर्ष 1921 में की गयी।
- सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासी मुख्य रूप से द्रविड़ एवं भूमध्य सागरीय थे।
- यह सभ्यता उत्तर में माण्डा से लेकर दक्षिण में दायमाबाद तथा पूर्व में आलमगीरपुर से लेकर पश्चिम में सुत्कागेंडोर तक काँस्ययुगी विकसित सभ्यता थी।
- काँस्य युगीन सभ्यताः इस युग मे मुख्यतः काँस्य धातु का प्रयोग किया गया काँसा-ताँबा व जस्ते से बनी मिश्रधातु है।
- सिंधी भाषा में मोहनजोदड़ो का अर्थ ‘मु्र्दों का टीला’ (Mound of the Dead) होता है।
- वैज्ञानिक भाषा में सिन्धु सभ्यता की लेखनु शैली को ‘वाउसट्रा-फेन्डम’ कहते है।
- लिपि मे पशु चिन्ह मछली का सर्वाधिक प्रयोग किया गया है।
- सिन्धु सभ्यता से जुड़े भारत में स्थित महत्वपूर्ण स्थल हैं- अहमदाबाद के समीप लोथल, राजस्थान में कालीबंगा, हिसार (हरियाणा) जिले में बनवाली, चण्डीगढ़ (पंजाब) के समीप रोपड़।
- ‘सर जॉन मार्शल’ हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की पुरातात्विक खुदाई के प्रभारी थे।
- कपास का उत्पादन सर्वप्रथम सिन्धु क्षेत्र में हुआ, जिसे ग्रीक या यूनान के लोग सिन्डन के नाम से पुकारा।
- स्वातंत्र्योत्तर भारत में सबसे अधिक संख्या में हड़प्पायुगीन स्थलों की खोज गुजरात प्रान्त में हुई।
- लोथल में हड़प्पाकालीन स्थल से युगल शवाधान का साक्ष्य मिला है।
- धौलावीरा स्थल की खुदाई से एक विशाल सैन्धवकालीन नगर के अवशेष का और एक उन्नत जल प्रबन्धन प्रणाली का पता चलता है।
- हड़प्पा लोहा धातु से परिचित नहीं थे।
- सिन्धु सभ्यता के लोग मातृदेवी की पूजा करते थे।
- वृक्ष पूजा का भी प्रचलन था। पीपल को सबसे पवित्र वृक्ष माना जाता था। मन्दिर के अवशेष यहाँ नहीं मिले है, फिर भी मातृदेवी की उपासना के साथ-साथ कूबडवाला सांड़ लोगों के लिए विशेष पूजनीय था। नाग की भी पूजा होती थी।
- इस सभ्यता से प्राप्त प्रमुख पशुपति मूर्ति की शील के चारों ओर हाथी, गैंडा, भैंसा, बाघ व हिरण का अंकन है।
- सिन्धु लिपि (हड़प्पा सभ्यता में प्रचलित लिपि) चित्राक्षर लिपि है, जिसमें चित्रों के माध्यम से सम्प्रेषण का प्रयास हुआ है। इस लिपि को पढ़ने में अभी तक सफलता नहीं पाई जा रही है।
- लोथल शहर से एक गोदी (डाक मार्ग) मिला है।
- ह्वीलर ने हड़प्पा को सुमेरियन सभ्यता का उपनिवेश की संज्ञा दी है।
- इस सभ्यता की लिपि को पढ़ने का प्रथम प्रयास वर्ष 1954 में हन्टर महोदय ने किया था। इस लिपि को, “गोमूत्रिका शैली” या “बास्त्रोफेदन” कहा जाता है।
- सिन्धु घाटी की सभ्यता पंजाब, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, सिन्ध और बलूचिस्तान तक विस्तृत थी।
- हड़प्पा सभ्यता के सम्पूर्ण क्षेत्र का आकार त्रिभुजाकार था।
- सिन्धु घाटी सभ्यता के घोड़े के अवशेष सुरकोटवा से प्राप्त हुए है।
- मेसोपोटामिया के अभिलेखों में वर्णित मेलुहा शब्द का अभिप्राय सिन्धु सभ्यता से ही है।
- कालीबंगन से जुते हुए खेत एवं अलंकृत ईँटों के प्रयोग के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
- मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ो कोटडीजी सिन्धु नदी के तट पर स्थित स्थल थे।
- मोहनजोदड़ो से विशाल स्नानागार प्राप्त हुआ है, जिसके मध्य स्थित स्नान कुण्ड की लंबाई 11.88 मीटर, 7.01 मीटर चौड़ाई और 2.43 मीटर गहराई है।
- सूती वस्त्र के साक्ष्य मोहनजोदड़ो से प्राप्त होते हैं।
- नर्तकी की एक काँस्य मूर्ति मोहनजोदड़ो में मिली है।
- लोथल और चन्हुदड़ो से मनके बनाने के कारखाने मिले है।
- बनावली से मिट्टी के बने हल का प्रतिरूप, वास्तविक हल के टुकड़े, सेलखड़ी और टेराकोटा की मोहरें, सरसों के ढेर प्राप्त हुए हैं।
- मोहनजोदड़ो से सर्वाधिक मात्रा में सेलखड़ी की मुहरें प्राप्त हुई है, जो प्रायः चौकोर थीं। लोथल और देशलपुर से ताँबे की मुहरें प्राप्त हुई है।
- सिन्धु सभ्यता की प्रमुखु फसलें गेहूँ और जौ थी।
- सिन्धु सभ्यता के बालू परास्थलत से लहसुन की कलियाँ प्राप्त हुई हैँ।
- कालीबंगन से अग्निपूजा की प्रथा के प्रमाण मिले है।
- सिन्धु घाटी की सभ्यता की अधिकतर मोहरें सेलखड़ी से निर्मित है।
- गोर थोलो स्थल गुजरात राज्य में स्थित है।
- सिन्धु सभ्यता शब्द का प्रयोग सर जॉन मार्शल द्वारा किया गया था।
- सिन्धु सभ्यता के लोगों के वर्तन चिकनी मिट्टी के बने होते थे।
- मेहरगढ़ से पशुपालन एवं कृषि के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं इस स्थान से नवपाषाण युग के बहुत से अवशेष मिले हैं।
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