भारतीय संविधान के भाग 18 में आपात से संबंधित उपबंध निहित है।
ये आपातकालीन उपबंध केंद्र को किसी भी असामान्य स्थिति से प्रभावी तरीके से निपटने में सक्षम बनाते है।
संविधान में तीन स्थितियों में आपातकाल की व्यवस्था की गई है। (1). युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण, (2). राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता के कारण तथा (3).वित्तीय आपात।
राष्ट्रीय आपात के दौरान सभी राज्य केंद्र के पूर्ण नियंत्रण में आ जाते है।
अनुच्छेद 352 (1) के तहत भारत का राष्ट्रपति युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति उत्पन्न होने या उसका संकट सन्निकट होने पर राष्ट्रीय आपात ही उद्घोषणा कर सकता है।
अनुच्छेद 352 (3) के तहत राष्ट्रपति ऐसी उद्घोषणा संघीय मंत्रिमंडल का लिखित विनिश्चय प्राप्त होने पर ही कर सकता है।
आपातकाल की उद्घोषणा का अनुमोदन संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत (सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मद देने वाले सदस्यों के न्यूनतम दो-तिहाई बहुमत) से एक माह के भीतर होना आवश्यक है।
लोक सभा के विघटन की स्थिति में आपातकाल की उद्घोषणा, लोकसभा के पुनर्गठन के बाद पहली बैठक से 30 दिनों तक जारी रहेगी, यदि इस दौरान राज्य सभा द्वारा इसका अनुमोदनु कर दिया गया हो।
संसद के दोनों सदनों से अनुमोदन के पश्चात आपातकाल (यदि बीच में वापस नहीं लिया जाता है तो) 6 माह तक जारी रहेगा तथा प्रत्येक 6 माह में संसद के विशेष बहुमत के अनुमोदन से इसे आगे भी जारी रखा जा सकता है।
अनुच्छेद 352 (7) के तहत आपात की उद्घोषणा किसी भी समय लोक सभा द्वारा उसके अनुमोदन का संकल्प सा्मान्य बहुमत से पारित करने पर राष्ट्रपति द्वारा वापस ली जा सकती है।
राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान संसद को अनुच्छेद 250 के तहत राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
अनुच्छेद 353 के अनुसार, आपात की उद्घोषणा के प्रवर्तन में होने पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को इस बारे में निदेश देने तक होगा कि वह राज्य अपनी कार्यपालिका शक्ति का किस रीति से प्रयोग करे तथा किसी विषय के संबंध में विधियां बनाने की शक्ति के अंतर्गत संसद किसी भी विषय (उसके संघ सूची में न होने पर भी) पर ऐसी विधियां बना सकेगी, जो उस विषय के संबंध में संघ या उसके अधिकारियों/प्राधिकारियों को शक्तियां प्रदान करने या उन पर कर्तव्य अधिरोपित करे।
आपातकाल के दौरान संसद द्वारा राज्य सूची के विषयों पर बनाए गए कानून आपातकाल की समाप्ति के बाद 6 माह तक ही प्रभावी रहते है।
आपातकाल के दौरान यदि संसद सत्र न चल रहा हो, तो राष्ट्रपति, राज्य सूची के विषयों पर भी अध्यादेश जारी कर सकता है।
अनुच्छेद 354 के अनुसार, जब राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषण लागू हो तब राष्ट्रपति, केंद्र तथा राज्यों के मध्य राजस्वों के संवैधानिक वितरण को संशोधित कर सकता है।
अनुच्छेद 83 (2) के परंतुक के अनुसार, राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा के दौरान लोकसभा का कार्यकाल (5वर्ष), संसद द्वारा विधि बनाकर एक बार में एक वर्ष से अनधिक के लिए (कितनी भी बार) बढ़ाया जा सकता है, किंतु आपातकाल की समाप्ति के बाद विस्तार 6 माह से ज्यादा नहीं हो सकता। अनुच्छेद 172(1) के परंतुक के अनुसार, संसद आपात की उद्घोषणा के प्रवर्तन में रहने पर राज्य विधानसभा की अवधि भी इसी प्रकार बढ़ा सकती है।
संविधान के अनुच्छेद 358 तथा 359 राष्ट्रीय आपाताकाल के मूल अधिकारों पर प्रभाव का उल्लेख करते है।
जब युद्ध या बाह्य. आक्रमण के कारण राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा की जाती है, तो अनु. 358 के तहत अनु.19 द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता के 6 मूल अधिकार स्वतः ही निलंबित हो जाते है।
इसके लिए अलग से आदेश जारी करने की आवश्यकता नहीं होती
अनुच्छेद 359 के तहत अन्य मूल अधिकारों (अनु. 20 एवं 21 को छोड़कर) के निलंबन से संबंधित प्रावधान है।
यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को यह शक्ति देता है कि वह मूल अधिकारों के निलंबन को लागू करे।
अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल अब तक तीन बार ( 1962,1971 से 1975 में) घोषित किया गया है।
अनुच्छेद 356 के अनुसार, राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता पर ‘राष्ट्रपति शासन’ की घोषणा की जा सकती है।
यदि राष्ट्रपति का, किसी राज्य के राज्यपाल से प्रतिवेदन मिलने पर या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसमें उस राज्य का शासन इस संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता, तो राष्ट्रपति उद्घोषणा द्वारा उस राज्यों की सरकार के सभी या कोई कृत्य या शक्तियाँ अपने हाथ में ले सकता है।
इस व्यवस्था के तहत राष्ट्रपति को राज्य सरकार की समस्त शक्तियाँ प्राप्त हो जाती है।
राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद को हटा देता है।
इस दौरान संसद, राज्य के विधानमंडल की विधायी शक्तियों (बजट प्रस्ताव पारित करने सहित) का प्रयोग करती है।
इस प्रकार की उद्घोषणा जारी होने के दो माह के भीतर इसका संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदन हो जाना चाहिए।
यदि उद्घोषणा दोनो सदनों द्वारा स्वीकृत हो, तो राष्ट्रपति शासन 6 माह तक चलता है।
प्रत्येक 6 माह पर संसद की स्वीकृति से इसे किसी भी दशा में अधिकतम तीन वर्ष की अवधि तक ही बढ़ाया जा सकता है, परंतु राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा संपूर्ण भारत में अथवा संपूर्ण राज्य या उसके किसी भाग में प्रवर्तन में होने तथा निर्वाचन आयोग द्वारा राज्य विधानसभा हेतु आम निर्वाचन कराना संभव न होने के प्रमाणन पर ही इस अवधि को 1वर्ष से आगे बढ़ाया जा सकता है।
पंजाब राज्य में वर्ष 1987 मे लगाए गए राष्ट्रपति शासन की अवधि को संविधान संशोधनों द्वारा आगे (5 वर्ष तक के लिए) बढ़ाया गया था।
राष्ट्रपति शासन का प्रस्ताव सदन द्वारा सामान्य बहुमत से पारित किया जा सकता है।
अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपात से संबंधित प्रावधान उल्लिखित हैं।
राष्ट्रपति यदि संतुष्ट हो कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि भारत या उसके किसी क्षेत्र की वित्तीय स्थिति खतरे मे हैं तो वह वत्तीय आपात की घोषणा कर सकता है।
इस उद्घोषणा को जारी होने के दो माह के अंदर संसद की स्वीकृत मिलना अनिवार्य है।
संसद की सामान्य बहुमत से प्राप्त स्वीकृत से उपरांत वित्तीय आपात अनिश्चितकाल के लिए तब तक प्रभावी रहेगा, जब तक इसे पश्चातवर्ती उद्घोषणा द्वारा वापस न लिया जाए।
वित्तीय आपातकाल की अवधि में राज्य के सभी वित्तीय मामलों पर केंद्र का नियंत्रण हो जाता है।
हालांकि अभी तक कभी वित्तीय आपातकाल लागू नहीं किया गया है।
के.एम. नाम्बियर के अनुसार, राष्ट्रपति का आपातकालीन अधिकार संविधान के साथ धोखा है।
मूल संविधान के अनुच्छेद 352 के ‘आंतरिक अशांति के स्थान पर 44वें संविधान अधिनियम (1978) से ‘सशस्त्र विद्रोह’ प्रतिस्थापित किया गया है।
अनुच्छेद 355 के तहत संघ का यह कर्तव्य है कि बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशांति से प्रत्येक राज्य की रक्षा करे और प्रत्येक राज्य की सरकार का संविधान के उपबंधों के आधार पर चलाया जाना सुनिश्चित करे।